रायपुर। ‘लोगों की गलतियां उनके मुंह पर
बताएं। अगर ऐसा करने का साहस नहीं हो तो पीठ
पीछे निंदा ना करें। धर्म में निंदा की सख्त मनाही
है पर लोग मानते कहां हैं ! व्रत-उपवास के दौरान
भी निंदा करने से बाज नहीं आते।’ यह कहना है
जैन तपस्वी विराग मुनि का। वे शुक्रवार 27
सितम्बर को एमजी रोड जैन दादाबाड़ी में
चातुर्मासिक प्रवचन में श्रावक-श्राविकाओं को
संबोधित कर रहे थे ।
उन्होंने कहा कि, धर्मग्रंथों में परनिंदा करने वाले
लोगों को 12 गुना अधिक दंड का प्रावधान है।
किसी से गलती होने पर हमें तत्काल उसे सावधान
करना चाहिए । लेकिन हम व्यक्तिगत संबंध खराब
होने के डर से चुप हो जाते हैं। इससे यहां तो संबंध
बना रहेगा, लेकिन भगवान से संबंध खराब हो
जाएगा । विराग मुनि ने कहा कि जो व्यक्ति दुःखी
रहता है, वह दूसरों को भी दुःख ही देता है । सुख
को अपना स्वभाव बनाइए । सिद्धों की तरह खुश
रहना सीखिए । खान-पान, घूमने-फिरने का आनंद
क्षणिक है । सिद्ध धर्म में जीते हैं, जो उन्हें सदाकाल
का आनंद देता है। जो होना है, वो होकर रहेगा। इस
पर किसी का नियंत्रण नहीं है।
