हांगझाऊ। जम्मू-कश्मीर की 16 वर्षीय विलक्षण
प्रतिभाशाली शीतल देवी बिना बाजूओं की तीरंदाज
है । वह पैर से धनुष पकड़कर तीर चलाती हैं। दोनों
भुजाओं के बिना तीरंदाजी करने वाली दुनिया की
पहली महिला खिलाड़ी ने हांगझाऊ पैरा एशियाई
खेलों में कीर्तिमान प्रदर्शन करते हुए कंपाउंड
व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत लिया ।
प्रेरक प्रसंग
I
यह इन एशियाई खेलों में शीतल का तीसरा पदक
है। इससे पहले वह मिश्रित टीम स्पर्धा में स्वर्ण व
महिला टीम इवेंट में रजत पदक जीत चुकी हैं।
शीतल ने शुक्रवार 27 अक्टूबर को सुबह सिंगापुर
की अलीम नूर अयाहिदा को 144 – 142 से हराया ।
उन्होंने यहां फाइनल में अंतिम छह शॉट परफेक्ट 10
स्टोर प्राप्त किया जो कि हर कोई नहीं कर पाता ।
सटीक निशाने के लिए अदभुत संतुलन
शीतल धनुष को अपने दाएं पैर से पकड़ती है ।
उसे विशेष रूप से बने रिलीजर को कंधे से बांधकर
कमान खींचना होता है। ऐसा करते समय उसे 27.5
किलोग्राम वजन उठाने के बराबर ताकत लगानी
पड़ती है । पचास मीटर दूर सटीक निशाना लगाकर
तीर छोड़ने के लिए एक डिवाइस मुंह से पकड़ना
पड़ता है। इस दौरान कुर्सी पर बैठकर बाएं पैर के
सहारे शरीर का संतुलन बनाती है ।
महिला के शुभ कदम
एक व्यक्ति ने दुकानदार से पूछा – केले और
सेबफल का क्या भाव लगाए है ? दुकानदार ने कहा –
केले 20रु. दर्जन और सेब 100रु. किलो। उसी समय
एक गरीब सी महिला दुकान में आयी और बोली मुझे
एक किलो सेब और एक दर्जन केले चाहिए, क्या
भाव है भैया ? दुकानदार ने कहा, केले 5रु. दर्जन
और सेबफल 25रु. किलो । महिला ने कहा, जल्दी
से दे दीजिए। दुकान में पहले से उपस्थित ग्राहक ने
खा-जाने वाली निगाहों से घूरकर दुकानदार को
देखा, इससे पहले कि वो कुछ कहता, दुकानदार ने
ग्राहक को संकेत करते हुए थोड़ी सी प्रतीक्षा करने
को कहा। महिला खुशी-खुशी खरीददारी करके
दुकान से निकलते हुए बड़बड़ाई, हे भगवान तेरा
लाख-लाख शुक्र है, मेरे बच्चे फलों को खाकर बहुत
खुश होंगे। महिला के जाने के बाद, दुकानदार ने
शाश्वत राष्ट्रबोध
पहले से उपस्थित ग्राहक की ओर देखते हुए कहा,
ईश्वर साक्षी है भाई साहब, मैंने आपको कोई धोखा
देने का प्रयत्न नहीं किया है। यह विधवा महिला है,
जो चार अनाथ बच्चों की मां है। किसी से भी किसी
तरह की सहायता लेने को तैयार नहीं है । मैंने कई बार
प्रयत्न किया है और हर बार असफलता प्राप्त हुई है।
तब मुझे यही समाधान सुझा है कि जब कभी ये आए
तो, मैं उसे कम से कम दाम लगाकर दुकान की
सामग्री दे दूँ। मैं यह चाहता हूँ कि उसका भरम बना
रहे और उसे लगे कि वह किसी भी तरह विवश नहीं
है । इस तरह भगवान के बन्दों की पूजा कर लेता हूँ ।
थोड़ा रूक कर दुकानदार बोला- यह महिला सप्ताह
में एक बार आती है। भगवान साक्षी है, जिस दिन यह
दुकान आती है, उस दिन मेरी बिक्री बढ़ जाती है और
उस दिन परमात्मा की कृपा मुझपर बरस पड़ती है।
नवम्बर २०२३
२प्रेरक
बिना भुजाओं की पहली तीरंदाज ने भारत को दिलाया स्वर्ण
हांगझाऊ। जम्मू-कश्मीर की 16 वर्षीय विलक्षण
प्रतिभाशाली शीतल देवी बिना बाजूओं की तीरंदाज
है । वह पैर से धनुष पकड़कर तीर चलाती हैं। दोनों
भुजाओं के बिना तीरंदाजी करने वाली दुनिया की
पहली महिला खिलाड़ी ने हांगझाऊ पैरा एशियाई
खेलों में कीर्तिमान प्रदर्शन करते हुए कंपाउंड
व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत लिया ।
प्रेरक प्रसंग
I
यह इन एशियाई खेलों में शीतल का तीसरा पदक
है। इससे पहले वह मिश्रित टीम स्पर्धा में स्वर्ण व
महिला टीम इवेंट में रजत पदक जीत चुकी हैं।
शीतल ने शुक्रवार 27 अक्टूबर को सुबह सिंगापुर
की अलीम नूर अयाहिदा को 144 – 142 से हराया ।
उन्होंने यहां फाइनल में अंतिम छह शॉट परफेक्ट 10
स्टोर प्राप्त किया जो कि हर कोई नहीं कर पाता ।
सटीक निशाने के लिए अदभुत संतुलन
शीतल धनुष को अपने दाएं पैर से पकड़ती है ।
उसे विशेष रूप से बने रिलीजर को कंधे से बांधकर
कमान खींचना होता है। ऐसा करते समय उसे 27.5
किलोग्राम वजन उठाने के बराबर ताकत लगानी
पड़ती है । पचास मीटर दूर सटीक निशाना लगाकर
तीर छोड़ने के लिए एक डिवाइस मुंह से पकड़ना
पड़ता है। इस दौरान कुर्सी पर बैठकर बाएं पैर के
सहारे शरीर का संतुलन बनाती है ।
महिला के शुभ कदम
एक व्यक्ति ने दुकानदार से पूछा – केले और
सेबफल का क्या भाव लगाए है ? दुकानदार ने कहा –
केले 20रु. दर्जन और सेब 100रु. किलो। उसी समय
एक गरीब सी महिला दुकान में आयी और बोली मुझे
एक किलो सेब और एक दर्जन केले चाहिए, क्या
भाव है भैया ? दुकानदार ने कहा, केले 5रु. दर्जन
और सेबफल 25रु. किलो । महिला ने कहा, जल्दी
से दे दीजिए। दुकान में पहले से उपस्थित ग्राहक ने
खा-जाने वाली निगाहों से घूरकर दुकानदार को
देखा, इससे पहले कि वो कुछ कहता, दुकानदार ने
ग्राहक को संकेत करते हुए थोड़ी सी प्रतीक्षा करने
को कहा। महिला खुशी-खुशी खरीददारी करके
दुकान से निकलते हुए बड़बड़ाई, हे भगवान तेरा
लाख-लाख शुक्र है, मेरे बच्चे फलों को खाकर बहुत
खुश होंगे। महिला के जाने के बाद, दुकानदार ने
शाश्वत राष्ट्रबोध
पहले से उपस्थित ग्राहक की ओर देखते हुए कहा,
ईश्वर साक्षी है भाई साहब, मैंने आपको कोई धोखा
देने का प्रयत्न नहीं किया है। यह विधवा महिला है,
जो चार अनाथ बच्चों की मां है। किसी से भी किसी
तरह की सहायता लेने को तैयार नहीं है । मैंने कई बार
प्रयत्न किया है और हर बार असफलता प्राप्त हुई है।
तब मुझे यही समाधान सुझा है कि जब कभी ये आए
तो, मैं उसे कम से कम दाम लगाकर दुकान की
सामग्री दे दूँ। मैं यह चाहता हूँ कि उसका भरम बना
रहे और उसे लगे कि वह किसी भी तरह विवश नहीं
है । इस तरह भगवान के बन्दों की पूजा कर लेता हूँ ।
थोड़ा रूक कर दुकानदार बोला- यह महिला सप्ताह
में एक बार आती है। भगवान साक्षी है, जिस दिन यह
दुकान आती है, उस दिन मेरी बिक्री बढ़ जाती है और
उस दिन परमात्मा की कृपा मुझपर बरस पड़ती है।
नवम्बर २०२३