सामाजिक सरोकारों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका

वर्ष 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर
(महाराष्ट्र) में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की । इस वर्ष की
विजयादशमी को संघ स्थापना के 98 वर्ष पूर्ण हो
गए । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य संघ के
स्वयंसेवकों के परिश्रम, त्याग, बलिदान के आधार
पर तथा समाज के लगातार बढ़ते समर्थन से सतत
बढ़ रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने आप को
एक संगठन न मानकर समाज का ही अंग समझता
है। यही कारण है कि सामाजिक सरोकारों के प्रति
संघ निरंतर सचेत रहता है और उनके क्रियान्वयन के
लिए निरंतर प्रयासरत । यह समाज के सभी उपक्रमों
के लिए कार्य करने वाला संगठन है । जैसे शिक्षा,
सेवा, प्राकृतिक संरक्षण, जल संरक्षण, सामाजिक
सद्भाव, श्रमिक, उद्यमी, स्वदेशी के विकास,
प्राकृतिक संसाधनों का समेकित उपयोग, जैविक
कृषि, स्वदेशी तकनीक, वनवासी कल्याण, वनवासी
क्षेत्रों में शिक्षा और रोजगार का उद्भव आदि अनेक
ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें निरंतर कार्य करते हुए संघ ने
समाज और राष्ट्र की सोच में व्यापक परिवर्तन
लाकर अद्भुत कार्य किया है । इतिहास साक्षी है कि
देश में जब-जब कोई दैविक या मानवकृत आपदा
आयी है तो संघ मानवता के कल्याण के लिए सबसे
आगे रहा है। चाहे वह भूकंप की त्रासदी हो,
आपातकाल की राजनैतिक त्रासदी हो, सुनामी हो या
केदारनाथ की भयानक त्रासदी, कोरोना महामारी का
समय हो या फिर हिमाचल प्रदेश में आयी भयानक
आपदा। यह प्रमाणित है कि सेवा के जितने भी
प्रकल्प कहीं भी लगे हैं, उनमें संघ सबसे आगे रहा
है। अभी विगत दो वर्षों में कोरोना की महामारी में
अपनी सुरक्षा को संकट में डाल कर स्वयंसेवकों ने
अद्भुत कार्य किया। संघ का यह कार्य किसी क्षेत्र
विशेष में नहीं, बल्कि देश के हर कोने में स्वयंसेवकों
द्वारा तन-मन-धन के समर्पण भाव के साथ किया
शाश्वत राष्ट्रबोध
गया । हाल ही में हिमाचल में आयी आपदा के पश्चात
राहत व सहायता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । आपदा
से प्रभावित लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था हो या
उनके रहने के लिए स्थान का प्रबंध हो, संघ के
स्वयंसेवकों ने दिन रात बिना थके कार्य को सम्पूर्ण
किया । सेवा भारती ने पूरे प्रदेश में धनसंग्रह किया
और आपदा प्रभावितों को राहत पहुंचाया।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वस्तुतः एक सामाजिक
एवं सांस्कृतिक संगठन है। समाज में शिक्षा व्यवस्था
की बात हो या पर्यावरण संरक्षण की, सामाजिक
सद्भाव का विषय हो या फिर स्वदेशी को बढ़ावा
देने की बात हो, समाज के उद्यमी एवं साधन संपन्न
व्यक्ति हो या फिर अभाव में जीवन जी रहे वर्ग की
बात हो, समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति की
निरंतर चिंता करना और उसके उत्थान के किये कार्य
करना रा. स्व. संघ का स्वभाव है। जब कोई व्यक्ति
संघ में कार्य करने और इसके कार्यों में योगदान
करने आता है तो स्वाभाविक है कि वह समाज के
बारे में आवश्यक रूप से अपनी एक अवधारणा
बनाकर ही आता है।
संघ अपने आसपास के लोगों के दुःख, दरिद्रता
और अभाव को दूर करने का प्रयास करता है। संघ
ऐसे लोगों से चलता है जो होते तो हैं, पर दिखते
नहीं है । बीज से वृक्ष बनता है और इसके लिए बीज
को मिट्टी में मिल जाना पड़ता है। समर्पण ही बीज
की ताकत है। (स्रोत – शाश्वत राष्ट्रबोध)
नवम्बर २०२३

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