नई दिल्ली । माओवादी हिंसा की पीड़ा और दुःख-
दर्द को साझा करने तथा बस्तर को माओवाद से मुक्त
करने की मांग लेकर आतंक से पीड़ित 50 से अधिक
बस्तरवासी दिल्ली पहुंचे हैं। बस्तर शांति समिति के
बैनर तले विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी
पीड़ा देशवासियों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।
इसी क्रम में नक्सली हिंसा से पीड़ित
बस्तरवासियों का दल जवाहरलाल नेहरू
विश्वविद्यालय (जेएनयू) पहुँचा। पीड़ितों ने अपनी
व्यथा सुनाते हुए माओवाद के आतंक और अर्बन
नक्सल समूहों के समर्थन को लेकर अपनी बड़ी
नाराजगी व्यक्त की ।
समिति के सदस्य मंगऊ राम कावड़े ने कहा-
‘हम जेएनयू में आकर बस्तर की असली स्थिति से
युवाओं को अवगत कराना चाहते थे। हमने सुना है
कि जेएनयू में माओवाद और नक्सलवाद से संबंधित
बड़े कार्यक्रम होते हैं, जहां बुद्धिजीवी माओवादियों
के मानवाधिकार की बात करते हैं, पर नक्सल
पीड़ितों की व्यथा कोई नहीं सुनता’।
जेएनयू परिसर में कार्यक्रम का आयोजन अखिल
भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की जेएनयू
इकाई ने किया था। इस दौरान पीड़ितों ने साबरमती
हॉस्टल के सामने अपनी आपबीती साझा की।
पीड़ितों ने कहा कि माओवादी हिंसा में जहां जंगल
में छिपे नक्सली दोषी हैं, वहीं अर्बन नक्सल और
कम्युनिस्ट विचारधारा के लोग भी अन्याय में
बराबर के जिम्मेदार हैं। सवाल किया कि जब
मानवाधिकार कार्यकर्ता माओवादियों की बात
करते हैं, तो उन्हें हमारे मानवाधिकार क्यों नहीं
दिखाई देते ?
कार्यक्रम में ‘आमचो बस्तर’ के लेखक राजीव
रंजन प्रसाद ने कहा कि दिल्ली और जेएनयू की
धरती पर माओवादियों और अर्बन नक्सलियों की
बस्तर के नक्सल पीड़ित JNU में
Urban N
बातें तो कई बार की गई, लेकिन वास्तविक नक्सल
पीड़ितों की आवाज को यहां पहुंचने में 40 साल लग
गए। बस्तर की समस्या का समाधान माओवादी
हिंसा और कम्युनिस्ट विचारधारा से संभव नहीं है।
बस्तर के नक्सल पीड़ित केदारनाथ कश्यप ने
अपने दर्दनाक अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया
कि माओवादियों ने उनके भाई की उनके सामने हत्या
कर दी थी और उनके पैर पर भी गोली चलाई थी।
एक अन्य पीड़ित सियाराम रामटेके ने बताया कि
माओवादियों ने उन पर खेत में काम करते समय
हमला किया, जिससे वह अब कमर के नीचे से पूरी
तरह दिव्यांग हो गए हैं। बस्तर शांति समिति के
सदस्य जयराम दास ने कहा, ‘हम यहां उन
बुद्धिजीवियों को सच दिखाने आए हैं, जिन्हें
नक्सलवाद ‘क्रांति’ नजर आता है’।
कार्यक्रम के अंत में पीड़ितों ने जेएनयू के
विद्यार्थियों के साथ मिलकर “माओवाद की कब्र
खुदेगी, जेएनयू की धरती पर” और “नक्सलवाद
की चिता जलेगी” जैसे नारे लगाए। कार्यक्रम में
सैकड़ों छात्र उपस्थित रहे।
