नई दिल्ली। नक्सल प्रभावित बस्तर
से आए 50 से अधिक नक्सली
हिंसा से पीड़ित बस्तरवासियों ने
राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी
मुर्मू से भेंट की। उन्होंने अपनी व्यथा
को राष्ट्रपति के समक्ष रखा और
माओवादियों के आतंक से मुक्त
करवाने की गुहार लगाई।
बस्तर शांति समिति के सदस्यों
ने बताया कि बस्तर, जो कभी
अपनी आदिवासी संस्कृति और
परंपराओं के लिए जाना जाता था,
अब माओवादी हिंसा का गढ़ बन
चुका है। पीड़ितों ने कहा कि पिछले
40 वर्षों में माओवादियों ने बस्तर
के लोगों का जीवन नर्क बना दिया है। बस्तर के
ग्रामीण और वन्य क्षेत्रों में माओवादियों ने बारूदी
सुरंगें बिछाई हुई हैं, जिनकी चपेट में आने से कई
लोगों की जान जा चुकी है और कई गंभीर रूप से
घायल हो चुके हैं।
16 वर्षीय राधा सलाम ने अपनी पीड़ा साझा की।
उसने बताया कि माओवादी हमले के कारण उसने
अपनी एक आंख की रोशनी खो दी है। राधा ने कहा,
‘मैंने क्या गलत किया था जो मेरे साथ ऐसा हुआ ?’
घटना के समय वह केवल तीन वर्ष की थी एक
अन्य पीड़ित महादेव ने बताया कि माओवादियों के
बम हमले में उसका एक पैर खो गया ।
बस्तर शांति समिति के प्रवक्ता जयराम दास ने
बताया कि जो लोग राष्ट्रपति से मिलने आए हैं, वे
सभी माओवादी हिंसा के पीड़ित हैं।
कुछ ने अपने अंग खो दिए कुछ ने अपने परिवार
के सदस्यों को माओवादी हमलों में खोया है। कई
पीड़ितों ने माओवादियों की नृशंसता को अपने सामने
देखा है, जिसमें परिवार के सदस्यों की निर्मम हत्या
की गई। पीड़ितों ने राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर
आग्रह किया कि वह इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लें
और बस्तर को माओवादी हिंसा से मुक्त कराने के
लिए ठोस कदम उठाएं।
राष्ट्रपति ने नक्सली हिंसा की निंदा की
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पीड़ितों से मुलाकात कर
उनकी परेशानियों को सुना। उन्होंने अपने सोशल
मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर इस
मुलाकात की जानकारी साझा करते हुए कहा कि,
‘उनका मानना है कि कोई भी उद्देश्य हिंसा के रास्ते
पर चलने को उचित नहीं ठहरा सकता, जो हमेशा
समाज के लिए बहुत महंगा साबित होता है। वामपंथी
उग्रवादियों को हिंसा का त्याग करना चाहिए,
मुख्यधारा में शामिल होना चाहिए और वे जो भी
समस्याएँ उजागर करना चाहते हैं, उन्हें हल करने के
लिए सभी प्रयास किए जाएँगे। यही लोकतंत्र का
रास्ता है और यही रास्ता महात्मा गांधी ने हमें दिखाया
था। हिंसा से त्रस्त इस दुनिया में हमें शांति के रास्ते
पर चलने का प्रयास करना चाहिए’।
